वांछित मन्त्र चुनें

उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि प्र॒जाप॑तये त्वा॒ जुष्टं॑ गृह्णाम्ये॒ष ते॒ योनिः॒ सूर्य्य॑स्ते महि॒मा। यस्तेऽह॑न्त्संवत्स॒रे म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ वा॒याव॒न्तरि॑क्षे महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ दि॒वि सूर्ये॑ महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ तस्मै॑ ते महि॒म्ने प्र॒जाप॑तये॒ स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। त्वा॒। जुष्ट॑म्। गृ॒ह्णा॒मि॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। सूर्य्यः॑। ते॒। म॒हि॒मा। यः। ते॒। अह॑न्। सं॒व॒त्स॒रे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते। वा॒यौ। अ॒न्तरि॑क्षे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। दि॒वि। सूर्य्ये॑। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। तस्मै॑। ते॒। म॒हि॒म्ने। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् जगदीश्वर ! जो आप (उपयामगृहीतः) यम जो योगाभ्यास सम्बन्धी काम है, उन से समीप में साक्षात् किये अर्थात् हृदयाकाश में प्रगट किये हुए (असि) हैं, उन (जुष्टम्) सेवा किये हुए वा प्रसन्न किये (त्वा) आपको (प्रजापतये) प्रजापालन करने हारे राजा की रक्षा के लिये मैं (गृह्णामि) ग्रहण करता हूँ जिन (ते) आपकी (एषः) यह (योनिः) प्रकृति जगत् का कारण है, जो (ते) आपका (सूर्यः) सूर्यमण्डल (महिमा) बड़ाई रूप तथा (यः) जो (ते) आपकी (अहन्) दिन और (संवत्सरे) वर्ष में नियम बन्धन द्वारा (महिमा) बड़ाई (सम्बभूव) संभावित है (यः) जो (ते) आपकी (वायौ) पवन और (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (महिमा) बड़ाई (सम्बभूव) प्रसिद्ध है तथा (यः) जो (ते) आपकी (दिवि) बिजुली अर्थात् सूर्य आदि के प्रकाश और (सूर्ये) सूर्य में (महिमा) बड़ाई (सम्बभूव) प्रत्यक्ष है (तस्मै) उस (महिम्ने, प्रजापतये) प्रजापालनरूप बड़ाईवाले (ते) आप के लिये और (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (स्वाहा) उत्तम विद्यायुक्त बुद्धि सब को ग्रहण करनी चाहिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर के महिमा को यह सब जगत् प्रकाश करता है, उस परमेश्वर की उपासना को छोड़ और किसी की उपासना उसके स्थान में नहीं करनी चाहिये और जो कोई कहे कि परमेश्वर के होने में क्या प्रमाण है, उसके प्रति जो यह जगत् वर्त्तमान है सो सब परमेश्वर का प्रमाण कराता है, यह उत्तर देना चाहिये ॥२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उपयामगृहीतः) यो यामैर्यमसम्बन्धिभिः कर्मभिरुपसमीपे गृहीतः साक्षात्कृतः (असि) (प्रजापतये) प्रजापालकाय राज्ञे (त्वा) त्वाम् (जुष्टम्) वीतं सेवितं वा (गृह्णामि) (एषः) (ते) तव (योनिः) जगत्कारणं प्रकृतिः (सूर्यः) सवितृमण्डलम् (ते) तव (महिमा) माहात्म्यम् (यः) (ते) तव (अहन्) दिने (संवत्सरे) वर्षे (महिमा) (सम्बभूव) सम्भूतोऽस्ति (यः) (ते) (वायौ) (अन्तरिक्षे) (महिमा) (सम्बभूव) (यः) (ते) (दिवि) विद्युति सूर्यप्रकाशे वा (सूर्ये) (महिमा) (सम्बभूव) (तस्मै) (ते) तुभ्यम् (महिम्ने) महतो भावाय (प्रजापतये) प्रजापालकाय (स्वाहा) सद्विद्यायुक्ता प्रज्ञा (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् जगदीश्वर ! यस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तं जुष्टं त्वा प्रजापतयेऽहं गृह्णामि यस्य ते एष योनिरस्ति यस्ते सूर्या महिमा यस्तेऽहन् संवत्सरे महिमा सम्बभूव तस्मै महिम्ने प्रजापतये ते देवेभ्यश्च स्वाहा सर्वैः संग्राह्या ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्य परमेश्वरस्येदं सर्वे जगन्महिमानं प्रकाशयति तस्योपासनां विहायान्यस्य कस्यचित्तस्य स्थाने चोपासना नैव कार्या। यः कश्चिद् ब्रूयात् परमेश्वरस्य सत्त्वे किं प्रमाणमिति तं प्रति यदिदं जगद्वर्त्तते तत्सर्वं परमेश्वरं प्रमाणयतीत्युत्तरं देयम् ॥२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या परमेश्वराची महिमा सर्व जग जाणते त्याची उपासना सौडून इतर कुणाचीही उपासना करता कामा नये. जर एखाद्याने विचारले की, परमेश्वराच्या अस्तित्वाचे प्रमाण काय? तर जग हेच परमेश्वराच्या अस्तित्वाचे प्रमाण आहे, हे उत्तर दिले पाहिजे.